बाबा बैद्यनाथ धाम, जिसे बैद्यनाथ मंदिर देवघर के नाम से भी जाना जाता है, एक प्राचीन हिंदू मंदिर है जो भगवान शिव को समर्पित है। यह मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि इसकी पौराणिक महत्ता इसे विशेष बनाती है। बाबा बैद्यनाथ धाम 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जहाँ भगवान शिव अपने दिव्य रूप में विराजमान हैं। बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग को कामना लिंग भी कहा जाता हैं और यह एक सिद्धपीठ भी है। ये 51 शक्तिपीठों में एक है, जो देवी सती की दिव्य शक्ति स्थल है। यहां माता सती का हृदय गिरा था इसलिय इसे हृदयपीठ भी कहा जाता है। शिव और शक्ति का यह अद्वितीय संगम बाबा बैद्यनाथ धाम को एक अतुलनीय तीर्थ स्थल बनाता है।
बैद्यनाथ धाम को संस्कृत ग्रंथों में हरीतकी वन और केतकी वन कहा गया है। द्वादसा ज्योतिर्लिंग स्तोत्र में भी आदि शंकराचार्य बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का उल्लेख किया है:
पूर्वोत्तरे प्रज्वलिकानिधाने, सदावसन्तं गिरिजासमेतं ।
सुरासुराराधित्पाद्य्पद्मं श्री बैद्यनाथं तमहं नमामि ।।
मत्स्य पुराण बैद्यनाथ धाम को आरोग्य बैद्यनाथ के रूप में भी वर्णित करता है, पवित्र स्थान जहां शक्ति रहती है और लोगों को असाध्य रोगों से मुक्त करने में शिव की सहायता करती है।
बैद्यनाथ धाम का इतिहास | Baba Baidyanath Dham History in Hindi
बैद्यनाथ मंदिर देवघर की उत्पत्ति और निर्माता का नाम किसी भी लिपि में नहीं मिलती है। लेकिन कहा जाता है कि मंदिर के सामने के हिस्से के कुछ हिस्सों का पुनर्निर्माण 1596 में राजा पूरन मल द्वारा किया गया था, जो गिद्दौर के महाराजा के पूर्वज थे।
देवघर का यह पूरा क्षेत्र गिधौर के राजाओं के शासन में था, जो देवघर मंदिर से काफी जुड़े हुए थे। राजा बीर विक्रम सिंह ने 1266 में इस रियासत की स्थापना की थी।
हालांकि देवघर के मूल नागरिक पनारी और आदिवासी हैं, लेकिन बाद में कई धार्मिक समूह यहां निवास करने आए। ऐतिहासिक तथ्य कहते हैं कि मैथिल ब्राह्मण यहां 13वीं शताब्दी के अंत में और 14वीं शताब्दी की शुरुआत में मिथिला साम्राज्य से आए थे, जिसे दरभंगा के नाम से जाना जाता है। राधि ब्राह्मण 16वीं शताब्दी के दौरान मध्य बंगाल से यहां आए थे, कन्याकुब्ज भी इसी चरण के दौरान मध्य भारत से आए थे।
1757 में अंग्रेजों द्वारा प्लासी की लड़ाई जीतने के बाद, ईस्ट इंडिया कंपनी ने देवघर और मंदिर का प्रशासन अपने हाथ में ले लिया। ईस्ट इंडिया कंपनी के एक अधिकारी, श्री कीटिंग को मंदिर के प्रशासन को देखने के लिए भेजा गया था। वह बीरभूम के पहले अंग्रेज कलेक्टर थे, उन्होंने मंदिर के प्रशासन में रुचि ली।
1788 में, श्री कीटिंग के आदेश के तहत, श्री हेसिल्रिग, उनके सहायक, जो संभवत: पवित्र शहर का दौरा करने वाले पहले अंग्रेज व्यक्ति थे, तीर्थयात्रियों के प्रसाद और देय राशि के संग्रह की व्यक्तिगत रूप से निगरानी करने के लिए निकल पड़े। बाद में, जब श्री कीटिंग ने स्वयं देवघर मंदिर का दौरा किया, तो वे आश्वस्त हो गए और प्रत्यक्ष हस्तक्षेप की अपनी नीति को छोड़ने के लिए मजबूर हो गए। उसने मंदिर का पूरा नियंत्रण महायाजक (सरदार पंडा ) के हाथों में सौंप दिया।
तब से, प्रधान पुजारी मैथिल ब्राह्मण हैं। उनके पद को ‘सेवायत’ के नाम से जाना जाता है, जो प्रधान पुजारी और धार्मिक प्रशासक भी हैं। वर्तमान में, मंदिर प्रशासन एक ट्रस्ट के अधीन है, जिसके सदस्य राजा गिद्दोर के स्थानीय पुजारी (पंडा) समुदाय के प्रतिनिधि हैं और उपायुक्त देवघर रिसीवर हैं।
पुजारी ब्राह्मणों का गहरे संबंध मंदिर से हैं। ये सभी पुजारी समूह केवल पुजारी नहीं हैं, बल्कि वे शिव उपासकों, तीर्थयात्रियों और भक्तों को आश्रय और अन्य सहायता देकर सहायता करते हैं। मंदिर की पवित्रता को बनाए रखने में उनका असीम योगदान है।
बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार दशानन रावण भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए हिमालय पर तप कर रहे थे।वह एक-एक करके अपने सिर काटकर शिवलिंग पर चढ़ा रहे थे। 9 सिर चढ़ाने के बाद जब रावण 10वां सिर काटने वाला था तो शिवजी प्रसन्न होकर प्रकट हो गये। उन्होंने उसके दसों सिर ज्यों-के-त्यों कर दिये और उससे वरदान माँगने को कहा।
रावण ने लंका में जाकर शिवलिंग को स्थापित करने के लिये उसे ले जाने की आज्ञा माँगी। शिवजी ने अनुमति तो दे दी, पर इस चेतावनी के साथ दी कि यदि मार्ग में इसे पृथ्वी पर रख देगा तो वह वहीं अचल हो जाएगा। अन्ततोगत्वा वही हुआ।
भगवान शिव के इस निर्णय से सभी देवता चिंतित हो गए और स्वर्ग में विकट स्थिति उत्पन्न हो गई। ऐसा इसलिए था क्योंकि रावण इसका फायदा उठा सकता था और एक दिन स्वर्ग पर राज कर सकता था।
इसलिए, सभी देवताओं ने इसका समाधान खोजने के लिए विष्णु के साथ बैठक करने का फैसला किया। बाद में चर्चा में उन्हें रावण को भगवान शिव को लंका ले जाने से रोकने की योजना मिली।
योजना के अनुसार, गंगा ने राजा रावण के शरीर में प्रवेश किया और उसे लघुशंका करने के लिए मजबूर किया। उसी समय गुरु विष्णु चरवाहे के वेश में सारा दृश्य देख रहे थे। नियंत्रण करने में असमर्थ रावण ने चरवाहे को तब तक लिंग धारण करने के लिए कहा जब तक कि वह मुत्र त्याग नहीं कर देता।
लघुशंका करने में इतना समय लगा क्योंकि उसके शरीर के अंदर गंगा थी। चरवाहा शिवलिंग को पकड़ कर थक गया और उसने शिवलिंग को जमीन पर रख दिया।
लघुशंका निवृत्ति के बाद रावण को हाथ धोने के लिए पानी की जरूरत पड़ी। आसपास पानी का कोई स्रोत नहीं था, इसलिए उसने जमीन से पानी निकालने के लिए अपने अंगूठे से पृथ्वी को दबाया। बाद में इस स्थान ने एक तालाब का रूप धारण कर लिया और इसे शिव-गंगा तालाब के नाम से जाना गया।
हाथ धोने के बाद रावण शिवलिंग को धरती से उखाड़ने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं कर सके। गुस्से में उन्होंने शिवलिंग को धरती के अंदर दबा दिया। और इस तरह भगवान शिव के बारह लिंगों में से एक अस्तित्व में आया। इसलिए इसे रावणेश्वर बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के नाम से भी जाना जाता है।
देवघर मन्दिर के मुख्य आकर्षण
22 मंदिर एक ही परिसर मे
बैद्यनाथ मंदिर परिसर मे ज्योतिर्लिंग बाबा बैद्यनाथ मंदिर, शक्ति पीठ माँ पार्वती मंदिर, के अलावे 20 अन्य मंदिर स्थित हैं । परिसर में 22 मंदिरों की सूची:
- बाबा बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर (72 फ़ीट ऊँचा मुख्य मंदिर)
- मां काली मंदिर
- मां अन्नपूर्णा मंदिर
- लक्ष्मी नारायण मंदिर
- नील कंठ मंदिर
- माँ पार्वती मंदिर (जय दुर्गा शक्ति पीठ)
- मां जगत जन्नई मंदिर
- गणेश मंदिर
- ब्रह्मा मंदिर
- मां संध्या मंदिर
- काल भैरव मंदिर
- हनुमान मंदिर
- मनसा मंदिर
- मां सरस्वती मंदिर
- सूर्य नारायण मंदिर
- मां बागला मंदिर
- नरवदेश्वर मंदिर
- श्री राम मंदिर
- मां गंगा मंदिर
- आनंद भैरव मंदिर
- गौरी शंकर मंदिर
- माँ तारा मंदिर
चंद्रकांत मणि
बैद्यनाथधाम मंदिर के गर्भगृह में चंद्रकांत मणि है। जिससे सतत जल स्रवित होकर लिंग विग्रह पर गिरता है। बैद्यनाथ ज्योर्तिलिंगपर गिरनेवाला जल चरणामृत के रूप में जब लोग ग्रहण करते हैं तब वह किसी भी रोग से मुक्ति दिलाता है। इस लिए इन्हे आरोग्य बैद्यनाथ के नाम से भी जाना जाता है।
चंद्र कूप
चंद्र कूप (कुआं) मंदिर प्रांगण के मुख्य द्वार के पास स्थित है। तत्कालिन सरदार पंडा (1702) चंद्रमणी ओझा ने संत संन्यासी केवट राम की सलाह पर कूप (कुआं) खोदवाया था। यदि आपके पास भगवान शिव को चढ़ाने के लिए गंगा जल नहीं है, तो आप इस कुएं के पवित्र जल का उपयोग भगवान को अर्पित करने के लिए कर सकते हैं।
पंचशूल
इस मंदिर की एक प्रमुख विशेषता यह है कि दुनिया के बाकी मंदिरों में त्रिशूल के विपरीत यहां मंदिर के शीर्ष पर ‘पंचशूल’ है। ‘पंचशूल’ को एक सुरक्षा कवच माना जाता है।
यहाँ प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि से 2 दिनों पूर्व बाबा मंदिर, माँ पार्वती व लक्ष्मी-नारायण के मंदिरों से पंचशूल उतारे जाते हैं। इस दौरान पंचशूल को स्पर्श करने के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है।
वैद्यनाथधाम परिसर में स्थित अन्य मंदिरों के शीर्ष पर स्थित पंचशूलों को महाशिवरात्रि के कुछ दिनों पूर्व ही उतार लिया जाता है। सभी पंचशूलों को नीचे लाकर महाशिवरात्रि से एक दिन पूर्व विशेष रूप से उनकी पूजा की जाती है और तब सभी पंचशूलों को मंदिरों पर यथा स्थान स्थापित कर दिया जाता है।
इस दौरान बाबा व पार्वती मंदिरों के गठबंधन को हटा दिया जाता है। महाशिवरात्रि के दिन नया गठबंधन किया जाता है। गठबंधन के लाल पवित्र कपड़े को प्राप्त करने के लिए भी भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है।
पवित्र कांवर यात्रा – श्रावणी मेला
हर साल जुलाई और अगस्त के बीच (श्रवण माह) भारत के विभिन्न हिस्सों से लगभग 70 से 80 लाख भक्त शिव को जल अर्पित करने के लिए देवघर पैदल आते हैं। जिसे कांवर यात्रा के नाम से जाना जाता है और इसे कांवरिया मेला या श्रावणी मेला भी कहा जाता है।
यहाँ का श्रावणी मेला विश्व विख्यात है। लाखों शिव भक्त श्रावण के महीने में पूजा के लिए सुल्तानगंज से देवघर तक 105 किलोमीटर की दूरी पैदल चल कर गंगा जल ले कर भगवान शिव पर जल चढाने आते हैं | बैद्यनाथधाम के कांवर यात्रा की शुरुआत श्रावण मास (जुलाई-अगस्त) से होती है जो महीने भर और भाद्र मास तक अनवरत चलता रहता है।
बैद्यनाथ धाम कैसे पहुंचें
बैद्यनाथ धाम देवघर – रेल, सड़क और हवाई मार्ग से देश के अन्य प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है।
सड़क मार्ग से
देवघर शहर के लिए बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल के आसपास के शहरों (से) के लिए नियमित बस सेवाएँ उपलब्ध हैं। झारखंड राज्य परिवहन निगम, पश्चिम बंगाल राज्य परिवहन निगम और कुछ निजी यात्रा सेवाएं प्रतिदिन बस सेवाएं प्रदान करती हैं। आप टैक्सी भी किराए पर ले सकते हैं या अपनी गाड़ी से भी यात्रा कर सकते हैं। अगर आप कोलकाता से आ रहे हैं, तो NH2 और NH114 से आ सकते हैं। रांची से आने पर NH20 / NH320 और पटना से आने पर NH31 / NH333 से देवघर पहुँच सकते हैं।
निकटतम बस्ट स्टैंड:
- देवघर बस स्टैंड – बैद्यनाथ धाम मंदिर 2 किमी दूर है।
रेल मार्ग से
देवघर मार्ग से से भी भारत के बाकी हिस्सों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन बैद्यनाथ धाम स्टेशन है, लेकिन मुख्य स्टेशन जसीडीह जंक्शन है, जो हावड़ा (कोलकाता) – पटना – नई दिल्ली रेल मार्ग पर स्थित है। इस मार्ग पर नियमित यात्री ट्रेनें और एक्सप्रेस ट्रेनें उपलब्ध हैं। जसीडीह जंक्शन देवघर शहर से 7 किमी की दूरी पर स्थित है और रेल लिंक लाइन के माध्यम से बैद्यनाथ धाम स्टेशन से भी जुड़ा हुआ है।
निकटतम रेलवे स्टेशन:
- जसीडीह जंक्शन (JSME) – देवघर मंदिर से 7 किलोमीटर दूर
- देवघर रेलवे स्टेशन- 3 किलोमीटर (लगभग)
- बैद्यनाथ धाम रेलवे स्टेशन (लिंक लाइन) -2 किमी
जसीडीह पहुँचने के बाद, आप देवघर के लिए टैक्सी या ऑटो बुक कर सकते हैं, जो जसीडीह जंक्शन से केवल 7 किमी की दूरी पर है। टैक्सी का औसत किराया ₹250 है और ऑटो का ₹150 है। आप जसीडीह से बैद्यनाथ धाम स्टेशन के लिए (प्लेटफॉर्म नंबर 4 से) लोकल ट्रेन भी ले सकते हैं।
हवाई मार्ग से
निकटतम अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा देवघर (DGH) है। यहाँ से कोलकाता और दिल्ली के लिए दैनिक उड़ानें उपलब्ध हैं। इसके अलावा पटना, रांची और बंगलुरु से भी देवघर के लिए उड़ाने हैं।
निकटतम हवाई अड्डा:
- देवघर हवाई अड्डा– 9 किमी
- बिरसा मुंडा हवाई अड्डा रांची – 250 किमी
- लोक नायक हवाई अड्डा पटना – 255 किमी
- नेताजी सुभाष चंद्र बोस हवाई अड्डा कोलकाता – 271 किमी
देवघर में कहाँ ठहरें – मंदिर के निकटतम होटल
देवघर में सैकड़ों होटल हैं, जहाँ आप अपने बजट और सुविधा के अनुसार ठहरने का विकल्प चुन सकते हैं। इसके अलावा, आप अपनी आवश्यकता के अनुसार गेस्ट हाउस और धर्मशालाओं में भी ठहर सकते हैं।
देवघर के कुछ अच्छे 3-स्टार होटल (औसत शुल्क- ₹2500):
- इम्पीरियल हाइट्स देवघर
- गीतांजलि इंटरनेशनल
- वैष्णवी क्लार्क्स इन देवघर
- होटल देवघर पैलेस
- होटल बैद्यनाथ
- गिरिराज सनराइज
- होटल मरीन ब्लू
- जेनएक्स रामेश्वरम देवघर
- पाम ट्री इन, जसीडीह
कुछ बजट होटल (2-स्टार और उससे कम):
- यशोदा इंटरनेशनल
- होटल रिलैक्स
- धनराज रेसिडेंसी
- होटल रेडिएशन
- न्यू ग्रैड होटल
- न्यू यात्रीक होटल
- मिलन पैलेस
देवघर में और भी कई अच्छे स्टार और बजट होटल उपलब्ध हैं। जिसकी बुकिंग आप ऑनलाइन ऍप से या देवघर पहुंचकर ऑफलाइन कर सकते हैं।
देवघर में क्या खाएं – देवघर विशेष
देवघर अपने विशेष खाद्य पदार्थों और प्रसाद के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ के कुछ प्रमुख खाद्य पदार्थ हैं:
- पेड़ा – दूध से बना एक विशेष मिठाई और बाबाधाम का प्रसाद।
- तिलकुट – तिल और चीनी को मिलाकर बनाए जाने वाला यह खाद्य पदार्थ विशेष रूप से दिसंबर से फरवरी के बीच मिलता है।
- रबड़ी – गाढ़े दूध से बनी रबड़ी पूरे वर्ष उपलब्ध रहती है।
देवघर में कई अच्छे रेस्टोरेंट हैं जहाँ भारतीय व्यंजनों का आनंद लिया जा सकता है। खाने के कुछ बेहतरीन स्थान हैं: मैग्नोलिया (कैस्टेयर्स टाउन), पाकवान (टावर चौक), इम्पीरियल हाइट्स, नीलकमल, कैफे स्पाइसेस, और वेदा इन।
देवघर से क्या खरीदें
देवघर हस्तनिर्मित लकड़ी और मिट्टी के शिल्प के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर की गलियों में लाख की बनी रंग-बिरंगी चूड़ियाँ भी मिलती हैं। पर्यटक यहाँ के स्थानीय बाजारों में खरीदारी कर झारखंड की समृद्ध परंपराओं को नजदीक से जान सकते हैं। इन बाजारों में सजावटी और धार्मिक मूर्तियाँ, वस्त्र आदि स्थानीय विक्रेताओं द्वारा बेचे जाते हैं। देवघर की अनोखी हस्तकला सरलता और स्वाभाविकता को दर्शाती है।
यहाँ उन्नत शॉपिंग मॉल भले ही न हों, लेकिन स्थानीय बाजारों में आपकी सभी शॉपिंग इच्छाएँ पूरी हो सकती हैं। कुछ दुकानों पर आपको बिहार की मधुबनी कला भी देखने को मिल सकती है।
देवघर आस पास घूमने के स्थान
देवघर मुख्यतः बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। इसके अलावा यहाँ कई ऐसे पर्यटन स्थल हैं जो पर्यटकों और श्रद्धालुओं को आध्यात्मिकता और प्राकृतिक सुंदरता का अनुभव कराते हैं। बैद्यनाथ मंदिर के अलावा ये कुछ प्रमुख पर्यटन स्थल हैं जो देवघर के सांस्कृतिक और धार्मिक अनुभव को और भी विशेष बनाती है-
- बासुकीनाथ मंदिर
- नौलखा मंदिर देवघर
- त्रिकुट पर्वत रोपवे
- जय दुर्गा शक्तिपीठ
- तपोवन पहाड़ी और गुफाएँ
- नंदन पहाड़ थीम पार्क
- सत्संग आश्रम देवघर
- रामकृष्ण मिशन देवघर
- रिखियापीठ आश्रम
- मयूराक्षी नदी – मसंजोर डैम
बाबा बैद्यनाथ मंदिर संपर्क जानकारी
पता– शिवगंगा मुहल्ला, बैद्यनाथ गली, जिला- देवघर, झारखंड, पिन – 814112
संपर्क नंबर– +91-9430322655, 06432-232680
ईमेल आईडी– contact@babadham.org
आधिकारिक वेबसाइट– https://babadham.org
मंदिर का समय – सुबह 4 बजे – दोपहर 3:30 बजे और शाम 6 बजे से रात 9 बजे तक। लेकिन विशेष धार्मिक अवसरों पर समय बढ़ाया जा सकता है।