Shri Suktam in Hindi – हिंदू धर्म में देवी लक्ष्मी को धन, समृद्धि और सुख-शांति की देवी के रूप में पूजा जाता है। उनके आशीर्वाद से जीवन में सौभाग्य, ऐश्वर्य और स्थिरता आती है। श्री सूक्त (Shri Suktam) एक महत्वपूर्ण वैदिक स्तोत्र है जो देवी लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए विशेष रूप से गाया जाता है। इस सूक्त में देवी की महिमा, उनके दिव्य स्वरूप, और उनके आशीर्वाद से मिलने वाली सुख-समृद्धि का वर्णन किया गया है।
श्री सूक्त का पाठ करने से जीवन में आर्थिक समृद्धि, मानसिक शांति और परिवार में खुशहाली बनी रहती है। जो लोग इसे श्रद्धा और विश्वास के साथ पढ़ते हैं, उन्हें देवी लक्ष्मी का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस लेख में हम श्री सूक्त का हिन्दी अर्थ सहित प्रस्तुत कर रहे हैं ताकि प्रत्येक श्लोक के गहरे अर्थ और उसके महत्व को समझा जा सके। आइए, श्री सूक्त का पाठ करके देवी लक्ष्मी की कृपा का अनुभव करें और अपने जीवन को समृद्ध बनाएं।
श्री सूक्त – Shri Suktam Path in Hindi
।। अथ श्री सूक्त मंत्र पाठ ।।
ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ॥1॥
अर्थ -> हे जातवेदा (सर्वज्ञ) अग्निदेव ! आप मेरे लिये सुवर्ण के रंग वाली, सोने और चाँदी के माला धारण करने वाली, चन्द्रमा के समान प्रसन्नकांति, स्वर्णमयी लक्ष्मीदेवी को आवाहन और अभिमुख करें।
तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ॥2॥
अर्थ -> हे जातवेदा अग्निदेव ! आप उन जगत प्रसिद्ध लक्ष्मीदेवी को मेरे लिये आवाहन करें जिनके आगमन से मैं सुवर्ण, गौ, अश्व और पुत्रादि को प्राप्त करूँगा।
अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रमोदिनीम्।
श्रियं देवीमुप ह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम् ॥3॥
अर्थ -> जिस देवी के आगे घोड़े तथा उनके मध्य में रथ जुते रहते हैं तथा ऐसे रथ में बैठी हुई जो हथियो की निनाद को सुनकर प्रमुदित होती हैं, उन्हीं श्रीदेवी का मैं आवाहन करता हूँ; लक्ष्मीदेवी मुझे प्राप्त हों।
कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां
ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्।
पद्मेस्थितां पद्मवर्णां
तामिहोप ह्वये श्रियम् ॥4॥
अर्थ -> जिसका स्वरूप ब्रह्मरूपा होने के कारण अवर्णनीय है तथा जो मंद मंद मुसकराने वाली है, जो चारों ओर सोने के आवरण से ओत प्रोत है एवं दया से आद्र ह्रदय वाली तेजोमयी हैं, स्वयं पूर्णकाम होने के कारण भक्तो के मनोरथों को पूर्ण करने वाली हैं, कमल के ऊपर विराजमान तथा पद्मवर्णा हैं, मैं उन लक्ष्मीदेवी का आवाहन करता हूँ।
चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं
श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम्।
तां पद्मिनीमीं शरणं प्र पद्ये
अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ॥5॥
अर्थ -> मैं चंद्रमा के समान प्रकाश वाली प्रकृत कान्तिवाली, अपनी कीर्ति से देदीप्यमान, स्वर्ग लोक में इन्द्रादि देवों से पूजित अत्यंत दानशीला, कमल के मध्य रहने वाली एवं अश्रयदाती की शरण ग्रहण करता हूँ। उन लक्ष्मी को मैं प्राप्त करता हूँ और आपको शरण्य के रूप में वरण करता हूँ।
आदित्यवर्णे तपसोऽधि जातो
वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः।
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु
या अन्तरा याश्च बाह्या अलक्ष्मीः ॥6॥
अर्थ -> हे सूर्य के समान कांति वाली देवी आपके तेजोमय प्रकाश से वृक्षों में श्रेष्ठ मंगलमय बिल्ववृक्ष उत्पन्न हुआ। उस बिल्व वृक्ष का फल मेरे बाहरी और भीतरी दरिद्रता को दूर करें।
उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह।
प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन्की र्तिमृद्धिं ददातु मे ॥7॥
अर्थ -> हे लक्ष्मी ! मुझे उत्तम यश, रत्न, धन आदि के साथ देवताओं के सखा कुबेर और उनके मित्र मणिभद्र प्राप्त हों अर्थात मुझे धन और यश की प्राप्ति हो। मैं इस राष्ट्र (संसार) में जन्म लिया है, अतः हे लक्ष्मी आप मुझे इसके गौरव के अनुरूप यश, समृद्धि और एश्वर्य प्रदान करें।
क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम्।
अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुद मे गृहात् ॥8॥
अर्थ -> मैं भूख प्यास आदि शारीरिक मलिनता को धारण करने वाली एवं लक्ष्मी की बड़ी बहन अलक्ष्मी (दरिद्रता) का सदा के लिए विनाश करता हूं। हे लक्ष्मी! तुम मेरे घर से सभी प्रकार की असमृद्धि, दु:ख, अनैश्वर्य और अभाव को दूर भगाओ।
गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम्।
ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोप ह्वये श्रियम् ॥9॥
अर्थ -> मैं सुगंधित द्रव्यों के अर्पण से प्रसन्न करने योग्य, किसी भी शक्तिशाली से न जीतने योग्य, सदा धन धान्यादि देकर अपने शरणागत भक्तों की इच्छा पूर्ण करनेवाली और संसार के समस्त प्राणियों की शासिका-स्वामिनी लक्ष्मी देवी को अपने यहां आवाहन करता हूं।
मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि।
पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ॥10॥
अर्थ -> हे लक्ष्मी ! मुझे मन की कामनाओं एवं संकल्प सिद्धि, वाणी की सत्यता, गौ आदि पशुओ एवं अन्नों के रूप सभी पदार्थ प्राप्त हो। सम्पति और यश आश्रय ले अर्थात श्रीदेवी हमारे यहाँ आगमन करें।
कर्दमेन प्रजा भूता मयि सम्भव कर्दम।
श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ॥11॥
अर्थ -> लक्ष्मी के पुत्र कर्दम की हम संतान हैं। हे कर्दम ! मेरे घर में लक्ष्मी निवास करें, केवल इतनी ही प्रार्थना नहीं है अपितु कमल की माला धारण करने वाली संपूर्ण संसार की माता लक्ष्मी को मेरे कुल में प्रतिष्ठित करें।
आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे।
नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले ॥12॥
अर्थ -> जिस प्रकार वरुणदेव स्निग्ध द्रव्यों को उत्पन्न करते है ( जिस प्रकार जल से स्निग्धता आती है ), उसी प्रकार, हे लक्ष्मीपुत्र चिक्लीत ! आप मेरे घर में निवास करें और दिव्यगुणयुक्ता श्रेयमान माता लक्ष्मी को मेरे कुल में निवास करायें।
आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिङ्गलां पद्ममालिनीम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ॥13॥
अर्थ -> हे अग्निदेव, आप मेरे लिए हाथियों के शुण्डाग्र से अभिषिक्त अतएव आर्द्र शरीर वाली, कमल-पुष्करिणी, पुष्टिकारिणी, पीतवर्णा, कमल की माला धारण करने वाली, चन्द्रमा के समान स्वर्णिम आभा वाली लक्ष्मी देवी का आवाहन करें ।
आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम्।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ॥14॥
अर्थ -> हे अग्निदेव! जो दुष्टों का निग्रह करने वाली होने पर भी दयाभाव से आर्द्रचित्त हैं, जो मंगलदायिनी, अवलम्बन प्रदान करने वाली यष्टिरूपा हैं, सुन्दर वर्णवाली, सुवर्णमालाधारिणी, सूर्यस्वरूपा तथा हिरण्यमयी हैं, उन प्रकाशस्वरूपा लक्ष्मी का मेरे लिए आवाहन करें।
तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरुषानहम् ॥15॥
अर्थ -> हे अग्निदेव! कभी नष्ट न होने वाली उन स्थिर लक्ष्मी का मेरे लिए आवाहन करें जो मुझे छोड़कर अन्यत्र नहीं जाने वाली हों, जिनके आगमन से बहुत-सा धन, उत्तम ऐश्वर्य, गौएं, दासियां, अश्व और पुत्रादि को हम प्राप्त करें।
॥फलश्रुति॥
यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम्।
सूक्तं पञ्चदशर्चं च श्रीकामः सततं जपेत् ॥16॥
अर्थ -> जो नित्य पवित्र और संयमशील होकर इस पंचदश (15) ऋचा वाले सूक्त से भक्तिपूर्वक घी की आहुति देता है और इसका पाठ ( जप ) करता है, उसकी श्री लक्ष्मी की कामना पूर्ण होती है।
।। इति श्रीसुक्तम सम्पूर्ण: ।।
FAQs – श्री सूक्त हिंदी अर्थ सहित – Shri Suktam Path in Hindi
1. श्री सूक्त में कितने मंत्र हैं?
श्री सूक्तम ऋग्वेद में वर्णित एक स्तोत्र है। Sri Sukta के मौलिक रूप में मन्त्रों की संख्या पन्द्रह है और सोलहवें मन्त्र में फलश्रुति है। बाद में ग्यारह मन्त्र परिशिष्ट के रूप में उपलब्ध होते हैं। श्री सूक्तम के नवीनतम रूप में 37 मंत्र उपलब्ध है।
2. श्री सूक्त का पाठ करने के लिए क्या कोई विशेष नियम हैं?
श्री सूक्त का पाठ करते समय शुद्धता और एकाग्रता बनाए रखना महत्वपूर्ण है। पाठ से पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए। अगर संभव हो तो इसे देवी लक्ष्मी की मूर्ति या चित्र के सामने बैठकर करें। इसके अलावा, पाठ के बाद देवी लक्ष्मी की आरती और प्रसाद वितरण करना भी शुभ माना जाता है।
3. श्री सूक्त पाठ करने से क्या लाभ होता है?
श्री सूक्त का पाठ देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने का सशक्त साधन है, जिससे व्यक्ति के जीवन में आर्थिक समृद्धि, मानसिक शांति और पारिवारिक सुख-शांति आती है। यह पाठ न केवल धन संबंधी समस्याओं का समाधान करता है बल्कि नकारात्मक ऊर्जाओं और संकटों से भी रक्षा करता है। श्री सूक्त का नियमित पाठ व्यक्ति के आत्मविश्वास और सकारात्मकता में वृद्धि करता है, जिससे जीवन में स्थिरता और संतुलन बना रहता है। इसके प्रभाव से मानसिक तनाव कम होता है, जिससे स्वास्थ्य में भी सुधार होता है। देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त कर व्यक्ति जीवन में उन्नति और खुशहाली का अनुभव करता है।